आज़ादी

Day 1,673, 04:27 Published in India India by Uv Ajed





"जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा".
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा."
- ख़ान



"हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !

अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?"
-बिस्मिल




सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक्त आने दे बता, देंगे तुझे ए आस्माँ!
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है?
एक से करता नहीं क्यों, दूसरा कुछ बातचीत;
देखता हूँ मैं जिसे वो, चुप तेरी महफ़िल में है।
रहबरे-राहे-मुहब्बत, रह न जाना राह में;
लज्जते-सहरा-नवर्दी, दूरि-ए-मंजिल में है।
अब न अगले वलवले हैं, और न अरमानों की भीड़;
एक मिट जाने की हसरत, अब दिले-'बिस्मिल' में है।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार;
अब तेरी हिम्मत का चर्चा,गैर की महफ़िल में है।
खींच कर लायी है सबको, कत्ल होने की उम्मीद;
आशिकों का आज जमघट, कूच-ए-कातिल में है।
है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर;
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली; गर वतन मुश्किल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
हाथ जिन में हो जुनूँ , कटते नही तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न;
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मकतल में, कातिल कह रहा है बार-बार;
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली, और नसों में इन्कलाब;
होश दुश्मन के उड़ा, देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
जिस्म वो क्या जिस्म है, जिसमें न हो खूने-जुनूँ;
क्या वो तूफाँ से लड़े, जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है।
-बिस्मिल



"Where the mind is without fear
and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been
broken up into fragments by
narrow domestic walls;
Where words come out from
the depth of truth;
Where tireless striving stretches
its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason
has not lost its way into the dreary
desert sand of dead habit;
Where the mind is lead forward by thee
into ever-widening thought and action-
Into that heaven of freedom, my Father,
let my country awake."
-Rabindranath Tagore

Regards

I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I—
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.